The divine mother who protects, nourishes, punish, bless as well as showing the easiest way to achieve liberation. यत्, साङ्ख्यैः, प्राप्यते, स्थानम्, तत्, योगैः, अपि, गम्यते, शास्त्र विधि अनुसार साधना करने से तत्वज्ञानियों द्वारा जो स्थान अर्थात् सत्यलोक प्राप्त किया जाता है तत्वदर्शीयों से उपदेश प्राप्त करके साधारण गृहस्थी व्यक्तियों अर्थात् कर्मयोगियोंद्वारा भी वही सत्यलोक स्थान प्राप्त किया जाता है और इसलिए जो पुरुष ज्ञानयोग और कर्मयोगको फलरूपमें एक देखता है वही यथार्थ देखता है अर्थात् वह वास्तव में भक्ति मार्ग जानता है. To bring joy to DURYODHANA’s heart, the great grandsire BHISMA, the oldest and most famous of the KAURAVAS, roared loudly like a lion (a battle-cry), and blew his conch to signal the army to advance towards the enemy. Geeta Ch-15-Prav-28 download. विगतेच्छाभयक्रोधः, यः, सदा, मुक्तः, एव, सः।।28।।, अनुवाद: (एव) वास्तव में (बाह्यान्) बाहरके (स्पर्शान्) विषयभोगोंको (बहिः) बाहर (कृत्वा) निकालकर (च) और (चक्षुः) नेत्रोंकी दृष्टिको (भु्रवोः) भृकुटीके (अन्तरे) बीचमें स्थित करके तथा (नासाभ्यन्तरचारिणौ) नासिकामें चलने(प्राणापानौ) प्राण और अपानवायु अर्थात् स्वांस-उस्वांस को (समौ) सम (कृत्वा) करके सत्यनाम सुमरण करता है (यतेन्द्रियमनोबुद्धिः) जिसने इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि जीती हुई हैं, अर्थात् जो नाम स्मरण पर ध्यान लगाता है मन को भ्रमित नहीं होने देता ऐसा (यः) जो (मोक्षपरायणः) मोक्षपरायण मोक्ष के लिए प्रयत्न शील (मुनिः) मननशील साधक (विगतेच्छाभयक्रोधः) इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है, (एव) वास्तव में (सः) वह (सदा) सदा (मुक्तः) मुक्त है। (27-28), हिन्दी: वास्तव में बाहरके विषयभोगोंको बाहर निकालकर और नेत्रोंकी दृष्टिको भृकुटीके बीचमें स्थित करके तथा नासिकामें चलने प्राण और अपानवायु अर्थात् स्वांस-उस्वांस को सम करके सत्यनाम सुमरण करता है जिसने इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि जीती हुई हैं, अर्थात् जो नाम स्मरण पर ध्यान लगाता है मन को भ्रमित नहीं होने देता ऐसा जो मोक्षपरायण मोक्ष के लिए प्रयत्न शील मननशील साधक इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है, वास्तव में वह सदा मुक्त है।, विशेष:- गीता अध्याय 5 मंत्र 29 में गीता बोलने वाला ब्रह्म काल कह रहा है कि जो नादान मुझे ही सर्व का मालिक व सर्व सुखदाई दयालु प्रभु मान कर मेरी ही साधना पर आश्रित हैं, वे पूर्ण परमात्मा को प्राप्त होने से मिलने वाली शान्ति से वंचित रह जाते हैं अर्थात् उनका पूर्ण मोक्ष नहीं होता। उनकी शान्ति समाप्त हो जाती है तथा नाना प्रकार के कष्ट उठाते रहते हैं।, भोक्तारम्, यज्ञतपसाम्, सर्वलोकमहेश्वरम्, हमलोग बुद्भिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उधत हो गये हैं ।। ४५ ।।. Basic Sanskrit Grammar; Geeta Adhyay PDF; Reference Books; Geeta Study Data; Videos. The King YUDISHTHIRA. Bhagavad Gita Chapter 1 English and Hindi Translation of all adhyay 1 verses in simple, easy to understand language. नवद्वारे, पुरे, देही, न, एव, कुर्वन्, न, कारयन्।।13।।, अनुवाद: (मनसा) मन को तत्वज्ञान के आधार से (वशी) काल लोक के लाभ से हटा कर दृढ़ इच्छा से (सर्व कर्माणि) सम्पूर्ण शास्त्र अनुकूल धार्मिक कर्मों अर्थात् सत्य साधना से (सóयस्य) संचित कर्म के आधार से अर्थात् सन्चय की हुई सत्य भक्ति कमाई के आधार से (सुखम्) वास्तविक आनन्द में अर्थात् पूर्णमोक्ष रूपी परम शान्ति युक्त सत्यलोक में (आस्ते) स्थित होकर निवास करता है (एव) इस प्रकार फिर (देही) शरीरी अर्थात् परमात्मा के साथ अभेद रूप में जीवात्मा (नवद्वारे) पंच भौतिक नौ द्वारों वाले शरीर रूप (पुरे) किले में (न कुर्वन्) न तो कर्म करता हुआ (न कारयन्) न ही कर्म करवाता हुआ अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सत्यलोक में ही सुख पूर्वक रहता है। (13), हिन्दी: मन को तत्वज्ञान के आधार से काल लोक के लाभ से हटा कर दृढ़ इच्छा से सम्पूर्ण शास्त्र अनुकूल धार्मिक कर्मों अर्थात् सत्य साधना से संचित कर्म के आधार से अर्थात् सन्चय की हुई सत्य भक्ति कमाई के आधार से वास्तविक आनन्द में अर्थात् पूर्णमोक्ष रूपी परम शान्ति युक्त सत्यलोक में स्थित होकर निवास करता है इस प्रकार फिर शरीरी अर्थात् परमात्मा के साथ अभेद रूप में जीवात्मा पंच भौतिक नौ द्वारों वाले शरीर रूप किले में न तो कर्म करता हुआ न ही कर्म करवाता हुआ अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सत्यलोक में ही सुख पूर्वक रहता है।, न, कर्तृत्वम्, न, कर्माणि, लोकस्य, सृजति, प्रभुः, Geeta BhaGwat ramaYan Vrindavan Office: ANAND VRINDAVAN : G Anand Vrindavan Ashram, ... JIVAN MUKTI VIVEK 20 25 80 50 30 20 50 180 80 100 60 175 10 5 40 25 50 65 65 60 60 15 6 12 15 120. आप कर्मोंके सन्यास अर्थात् कर्म छोड़कर आसन लगाकर कान आदि बन्द करके साधना करने की और फिर कर्मयोगकी अर्थात् कर्म करते करते साधना करने की प्रशंसा करते हैं इसलिए इन दोनोंमेंसे जो एक मेरे लिए भलीभाँती निश्चित कल्याणकारक साधन हो उसको कहिये। (1), भावार्थ:- अर्जुन कह रहा है कि भगवन आप एक ओर तो कह रहे हो कि काम करते करते साधना करना ही श्रेयकर है। फिर अध्याय 4 मंत्र 25 से 30 तक में कह रहे हो कि कोई तप करके कोई प्राणायाम आदि करके कोई नाक कान बन्द करके, नाद (ध्वनि) सुन करके आदि से आत्मकल्याण मार्ग मानता है। इसलिए आप की दो तरफ (दोगली) बात से मुझे संशय उत्पन्न हो गया है कृपया निश्चय करके एक मार्ग मुझे कहिए।, कर्म सन्यास दो प्रकार से होता है, 1. इसके अनन्तर सफेद घोडों से युक्त्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये ।। १४ ।।. इसके विपरित कर्म सन्यास से तो शास्त्र विधि रहित साधना होने के कारण दुःख ही प्राप्त होता है तथा शास्त्र अनुकूल साधना प्राप्त साधक प्रभु को अविलम्ब ही प्राप्त हो जाता है।. हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है ? सóयासम्, कर्मणाम्, कृष्ण, पुनः, योगम्, च, शंससि, Watch Queue Queue Sayoojyam and Kaivalyam. Find the same shloka below in English and Hindi. in English, Hindi, Gujarati, Tamil, Bengali, Marathi, Punjabi, Sanskrit, Telugu, Odia, Kannada, Malayalam, Oriya and in many other languages collection is here. Find the same shloka below in English and Hindi. और भी मेरे लिये जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित और सब-के-सब युद्ध में चतुर हैं ।। ९ ।।. According to Geeta, one who prays God will belong to that God means he will go in the refuge of that God which he prayed. Literature >> Book Author: Divik Ramesh अभितः, ब्रह्मनिर्वाणम्, वर्तते, विदितात्मनाम्।।26।।, अनुवाद: (कामक्रोधवियुक्तानाम्) काम-क्रोधसे रहित (यतचेतसाम्) प्रभु भक्ति में प्रयत्न शील (विदितात्मनाम्) परमात्माका साक्षात्कार किये हुए (यतीनाम्) परमात्मा आश्रित पुरुषोंके लिये (अभितः) सब ओरसे (ब्रह्मनिर्वाणम्) शान्त ब्रह्म को अर्थात् पूर्णब्रह्म परमात्मा को ही (वर्तते) व्यवहार में लाते हैं अर्थात् केवल एक पूर्ण प्रभु की ही पूजा करते हैं। (26), हिन्दी: काम-क्रोधसे रहित प्रभु भक्ति में प्रयत्न शील परमात्माका साक्षात्कार किये हुए परमात्मा आश्रित पुरुषोंके लिये सब ओरसे शान्त ब्रह्म को अर्थात् पूर्णब्रह्म परमात्मा को ही व्यवहार में लाते हैं अर्थात् केवल एक पूर्ण प्रभु की ही पूजा करते हैं।, विशेष - गीता अध्याय 5 श्लोक 27 व 28 में विवरण है कि जो साधक पूर्ण संत अर्थात् तत्वदर्शी संत से उपदेश प्राप्त कर लेता है फिर स्वांस-उस्वांस से सामान्य रूप से सुमरण करता है वही विकार रहित होकर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करके अनादि मोक्ष प्राप्त करता है।, स्पर्शान्, कृत्वा, बहिः, बाह्यान्, चक्षुः, च, एव, अन्तरे, भ्रुवोः, Subscribe to receive inspiration, ideas, and news in your inbox. इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-सम्बन्धियों को देखकर उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर ह्रषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा —— हे अच्युत ! SatPurush, has a body. Conches, kettle-drums, tabors, and trumpets and cowhorns blared across the battlefield. इस शो में हम आपको श्रीमद्‍भगवद्‍गीता के चौथे अध्याय के श्लोक सुनाएंगे और उनके मतलब समझाएंगे। बुद्धिमान् विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता।. For endless solutions for our daily life. O KRISHNA, why should we kill our own loved ones and kinsmen when no happiness or good can come out of so doing? However, the manuscripts that have survived into the modern era have preserved about eight thousand verses. एक तो सन्यास वह होता है जिसमें साधक परमात्मा प्राप्ति के लिए प्रेरित होकर हठ करके जंगल में बैठ जाता है तथा शास्त्र विधि रहित साधना करता है, दूसरा घर पर रहते हुए भी हठयोग करके घण्टों एक स्थान पर बैठ कर शास्त्र विधि त्याग कर साधना करता है, ये दोनों ही कर्म सन्यासी हैं।, यह भी दो प्रकार का होता है। एक तो बाल-बच्चों सहित सांसारिक कार्य करता हुआ शास्त्र विधि अनुसार भक्ति साधना करता है या विवाह न करा कर घर पर या किसी आश्रम में रहता हुआ संसारिक कर्म अर्थात् सेवा करता हुआ शास्त्र विधि अनुसार साधना करता है, ये दोनों ही कर्मयोगी हैं। दूसरी प्रकार के कर्मयोगी वे होते हैं जो बाल-बच्चों में रहते हैं तथा साधना शास्त्र विधि त्याग कर करते हैं या शादी न करवाकर घर में रहता है या किसी आश्रम में सेवा करता है, यह भी कर्म योगी ही कहलाते हैं।, सóयासः, कर्मयोगः, च, निःश्रेयसकरौ, उभौ, For one who wishes to establish himself in the divinity of Yoga. जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्यों का अनिश्चित काल तक नरक में वास होता है, ऐसा हम सुनते आये हैं ।। ४४ ।।. Sampoorna Bhagvad Gita (Contains 18 Adhyays) In Hindi Audio Online with Last Played Time and Adhyay Details on Home page The shrimad bhagvad gita is contain 18 Adhyay. Present here are the mighty archers, peers or friends, in warfare, of ARJUNA and BHIMA. इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल धर्म और जाती-धर्म नष्ट हो जाते हैं ।। ४३ ।।. स्पर्शान्, कृत्वा, बहिः, बाह्यान्, चक्षुः, च, एव, अन्तरे, भ्रुवोः. हे राजन् ! The conch named DEVADATTA was blown by DHANANJAYA (Arjuna). Adhyay 4 અધ્યાય ૪ – શ્લોક ૪૨ – ગીતાજી . Publisher Wow Publishing Pvt.ltd. ये, हि, संस्पर्शजाः, भोगाः, दुःखयोनयः, एव, ते, वास्तव में जो ये इन्द्रिय तथा विषयोंके संयोगसे उत्पन्न होनेवाले सब भोग हैं वे निश्चय ही कष्ट दायक योनियों के ही हेतु हैं और आदि-अन्तवाले अर्थात् अनित्य हैं। हे अर्जुन! shrimad bhagwat geeta 18 adhyay. Duryodhana explained with pride to Drona: Our army, led by BHISMA, is numerous and skilled. The ruler of KASI. ।। ३८ – ३९ ।।. आप —– द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा ।। ८ ।।. हे ब्राह्मणश्रेष्ठ ! • Slight click any area of screen to open the basic settings of book contains Previous, Next, Catlog, Day/Night, Config and About. Find the same shloka below in English and Hindi. Welcome to Books In Voice. Geeta Adhyay PDF; Santha Kaksha Registration ; Contact Us; Newsletter. और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी-को भी गुँजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात् आपके पक्षवालों के ह्रदय विदीर्ण कर दिये ।। १९ ।।. हे मधुसूदन ! जो साधक न किसीसे द्वेष करता है और न किसीकी आकांक्षा करता है, वह तत्वदर्शी सन्यासी ही है क्योंकि राग द्वेष युक्त व्यक्ति का मन भटकता है तथा इन से रहित साधक का मन काम करते करते भी केवल प्रभु के भजन व गुणगान में लगा रहता है इसलिए वह सदा सन्यासी ही है क्योंकि वही व्यक्ति बन्धन से मुक्त होकर पूर्ण मुक्ति रूपी सुख के जानने योग्य ज्ञान को ढोल के डंके से अर्थात् पूर्ण निश्चय के साथ भिन्न-भिन्न स्वतन्त्र होकर सही व्याख्या करता है।, भावार्थ:- इस मंत्र नं. It is said that there are 5 types of Moksha / Mukti – Liberation viz: Salokhyam, Sameepyam, Saroopyam. In Holy Yajurved, Adhyay 1, Mantra 15-16 and Adhyay 5 Mantra 1 and 32, it has been said – {AgneH tanur’ asi, Vishanwe twa Somasya tanur asi; KaviranghaariH asi, swarjyoti ritdhaama asi} Meaning: God has a body; the name of the God, who is the enemy of sins, is Kavir (Kabir). Format Paperback. By doing worship of all these gods we get temporary salvation . Geeta Adhyay PDF; Santha Kaksha Registration ; Contact Us; Newsletter. Read more Rog mukti mantra totke ।। बीमारियों से मुक्ति के उपाय। Search for: Recent Posts. The Shrimad Bhagvad gita is originally written in "Sanskrit" language. हे जनार्दन ! It is the best literature that I have come across in my life. I have no longer any control over my body; my hair stands on end. (यः) जो साधक (न) न किसीसे (द्वेष्टि) द्वेष करता है और (न) न किसीकी (काङ्क्षति) आकांक्षा करता है, (सः) वह तत्वदर्शी (नित्यसóयासी) सन्यासी ही है क्योंकि राग द्वेष युक्त व्यक्ति का मन भटकता है तथा इन से रहित साधक का मन काम करते करते भी केवल प्रभु के भजन व गुणगान में लगा रहता है इसलिए वह सदा सन्यासी ही है (हि) क्योंकि वही व्यक्ति (बन्धात्) बन्धन से मुक्त होकर (सुखम्) पूर्ण मुक्ति रूपी सुख के (ज्ञेयः) जानने योग्य ज्ञान को (निद्र्वन्द्धः) ढोल के डंके से अर्थात् पूर्ण निश्चय के साथ भिन्न-भिन्न (प्रमुच्यते) स्वतन्त्र होकर सही व्याख्या करता है। (3), हिन्दी: हे अर्जुन! इन्द्रियाणि, इन्द्रियार्थेषु, वर्तन्ते, इति, धारयन्।। 9।।, अनुवाद: (तत्त्ववित्) तत्वदर्शी (युक्तः) प्रभु में लीन योगी तो (पश्यन्) देखता हुआ (श्रृण्वन्) सुनता हुआ (स्पृशन्) स्पर्श करता हुआ (जिघ्रन्) सूँघता हुआ (अश्नन्) भोजन करता हुआ (गच्छन्) चलता हुआ (स्वपन्) सोता हुआ (श्वसन्) श्वांस लेता हुआ (प्रलपन्) बोलता हुआ (विसृजन्) त्यागता हुआ (गृह्णन्) ग्रहण करता हुआ तथा (उन्मिषन्) आँखोंको खोलता और (निमिषन्) मूँदता हुआ (अपि) भी (इन्द्रियाणि) सब इन्द्रियाँ (इन्द्रियार्थेषु) अपने-अपने अर्थोंमें (वर्तन्ते) बरत रही हैं अर्थात् दुराचार नहीं करता (इति) इस प्रकार (धारयन्) समझकर (एव) निःसन्देह (इति) ऐसा (मन्येत) मानता है कि मैं (कि×िचत्) कुछ भी (न) नहीं (करोमि) करता हूँ अर्थात् ऐसा कर्म नहीं करता जो पाप दायक है। (8-9), हिन्दी: तत्वदर्शी प्रभु में लीन योगी तो देखता हुआ सुनता हुआ स्पर्श करता हुआ सूँघता हुआ भोजन करता हुआ चलता हुआ सोता हुआ श्वांस लेता हुआ बोलता हुआ त्यागता हुआ ग्रहण करता हुआ तथा आँखोंको खोलता और मूँदता हुआ भी सब इन्द्रियाँ अपने-अपने अर्थोंमें बरत रही हैं अर्थात् दुराचार नहीं करता इस प्रकार समझकर निःसन्देह ऐसा मानता है कि मैं कुछ भी नहीं करता हूँ अर्थात् ऐसा कर्म नहीं करता जो पाप दायक है।, भावार्थ है कि जो कुछ भी हो रहा है परमात्मा की कृप्या से ही हो रहा है। जीव कुछ नहीं कर सकता। परमात्मा के विद्यान अनुसार चलने वाला सुखी रहता है तथा मोक्ष प्राप्त करता है। विपरीत चलने वाले को हानी होती है।, ब्रह्मणि, आधाय, कर्माणि, संगम्, त्यक्त्वा, करोति, यः, यतेन्द्रियमनोबुद्धिः, मुनिः, मोक्षपरायणः, वास्तव में बाहरके विषयभोगोंको बाहर निकालकर और नेत्रोंकी दृष्टिको भृकुटीके बीचमें स्थित करके तथा नासिकामें चलने प्राण और अपानवायु अर्थात् स्वांस-उस्वांस को सम करके सत्यनाम सुमरण करता है जिसने इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि जीती हुई हैं, अर्थात् जो नाम स्मरण पर ध्यान लगाता है मन को भ्रमित नहीं होने देता ऐसा जो मोक्षपरायण मोक्ष के लिए प्रयत्न शील मननशील साधक इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है, वास्तव में वह सदा मुक्त है।, मुझको सब यज्ञ और तपोंका भोगनेवाला सम्पूर्ण लोकोंके ईश्वरोंका भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी, ऐसा जानकर मेरे पर ही आश्रित रहने मुझ से मिलने वाली अस्थाई, अश्रेष्ठ शान्ति को प्राप्त होते हैं जिस कारण से उनकी परम शान्ति पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है अर्थात् शान्ति की क्षमता समाप्त हो जाती है, पूर्ण मोक्ष से वंचित रह जाते हैं इसलिए मेरा साधक भी महादुःखी रहता है, इसी का प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 66 में है कि शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसा तथा अध्याय 7 श्लोक 18 में तथा गीता अध्याय 6 श्लोक 15 में भी स्पष्ट प्रमाण है, इसीलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 16.17 में कहा है कि वास्तव में उत्तम पुरूष अर्थात् पूर्ण मोक्ष दायक परमात्मा तो कोई अन्य है इसलिए अध्याय 18 श्लोक 62, 64, 66 में कहा है कि अर्जुन सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृप्या से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम अर्थात् सत्यलोक को प्राप्त होगा।. 31.7M . दुर्बुद्भि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहनेवाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आये हैं, इन युद्ध करनेवालों कों मैं देखूंगा ।। २३ ।।. Why should we not realize, O KRISHNA, the wrong-doings and sins that the sons of DHRTARASATRA cannot see and realize, and save ourselves from committing these sins? The son of KUNTI (Arjuna), after viewing all of those relatives and friends posted in their positions on the battlefield, became melancholy and filled with compassion (love) for his relatives, and spoke in a sad voice: इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों-पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुह्रदों को भी देखा  उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वे कुन्तीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले ।। २६  ।।, उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर वे कुन्तीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले ।। २७-२८ ।।. अतएव हे माधव ! Geeta Adhyay PDF; Reference Books; Geeta Study Data; Videos. The earth and sky was filled with the extremely loud and terrible noise of the PANDAVAS’ bugles and voices which struck fear in the hearts of the KAURAVAS (the sons of Dhrtarashtra). न, प्रहृष्येत्, प्रियम्, प्राप्य, न, उद्विजेत्, प्राप्य, च, अप्रियम्, प्रियको प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और अप्रियको प्राप्त होकर उद्विगन्न न हो वह स्थिरबुद्धि संश्यरहित परमात्म तत्व को पूर्ण रूप से जानने वाले पूर्ण परमात्मामें एकीभावसे नित्य स्थित है।. कामक्रोधोद्भ्वम्, वेगम्, सः, युक्तः, सः, सुखी, नरः।।23।।, अनुवाद: (यः) जो साधक (इह) इस मनुष्य शरीरमें (शरीरविमोक्षणात्) शरीरका नाश होनेसे (प्राक्) पहले-पहले (एव) ही (कामक्रोधोद्भ्वम्) काम-क्रोधसे उत्पन्न होनेवाले (वेगम्) वेगको (सोढुम्) सहन करनेमें (शक्नोति) समर्थ हो जाता है (सः) वही (नरः) व्यक्ति (युक्तः)प्रभु में लीन भक्त है और (सः)वही (सुखी)सुखी है। (23), हिन्दी: जो साधक इस मनुष्य शरीरमें शरीरका नाश होनेसे पहले-पहले ही काम-क्रोधसे उत्पन्न होनेवाले वेगको सहन करनेमें समर्थ हो जाता है वही व्यक्ति प्रभु में लीन भक्त है और वही सुखी है।, यः, अन्तःसुखः, अन्तरारामः, तथा, अन्तज्र्योतिः, एव, यः, O GOVINDA, (Krishna), what in the use of a kindgom, enjoyment or even life? Watch Queue Queue. Practice of celibacy is integral part of spiritual life… something no spiritual traveler could do without. 3 में शास्त्र विधि अनुसार साधना करने वाले कर्मयोगी का विवरण है कि जो श्रद्धालु भक्त चाहे बाल-बच्चों सहित है या रहित है या किसी आश्रम में रहकर सतगुरु व संगत की सेवा में रत हैं। वह सर्वथा राग-द्वेष रहित होता है। वास्तव में वही सन्यासी है, वही फिर अन्य शास्त्र विरुद्ध साधकों को पूर्ण निश्चय के साथ सत्य साधना का ज्ञान स्वतन्त्र होकर बताता है।, साङ्ख्ययोगौ, पृथक्, बालाः, प्रवदन्ति, न, पण्डिताः, शक्नोति, इह, एव, यः, सोढुम्, प्राक्, शरीरविमोक्षणात्, जो साधक इस मनुष्य शरीरमें शरीरका नाश होनेसे पहले-पहले ही काम-क्रोधसे उत्पन्न होनेवाले वेगको सहन करनेमें समर्थ हो जाता है वही व्यक्ति प्रभु में लीन भक्त है और वही सुखी है।. कोरवों में वृद्ब बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के ह्रदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया ।। १२ ।।. 1968 per Vikram Calendar) in the village of Maharai in the district of Varanasi. MADHAVA (Lord Krishna) and PANDAVA were seated in their magnificent chariote attached to white horses and they blew gracefully their divine conches. shrimad bhagwat geeta 15 adhyay. Arjuna said: Download this app from Microsoft Store for Windows 10, Windows 10 Mobile, Windows Phone 8.1, Windows Phone 8. जो साधक न किसीसे द्वेष करता है और न किसीकी आकांक्षा करता है, वह तत्वदर्शी सन्यासी ही है क्योंकि राग द्वेष युक्त व्यक्ति का मन भटकता है तथा इन से रहित साधक का मन काम करते करते भी केवल प्रभु के भजन व गुणगान में लगा रहता है इसलिए वह सदा सन्यासी ही है क्योंकि वही व्यक्ति बन्धन से मुक्त होकर पूर्ण मुक्ति रूपी सुख के जानने योग्य ज्ञान को ढोल के डंके से अर्थात् पूर्ण निश्चय के साथ भिन्न-भिन्न स्वतन्त्र होकर सही व्याख्या करता है।. The purpose of Bhagavad Gita- Adhyay 2 Nov 28, 2017 No Comments Purpose of Bhagavad Gita- Adhyay 1 Nov 28, 2017 28 Comments The meaning of Bhagavad Gita Then, my king, seeing the KAURAVAS (the army of Dhrtarashtra), positioned and ready to begin fighting, ARJUNA, whose flag was that of HANUMAN, spoke the following words to SHRI KRISHNA, as he lifted his bow to fight the battle. सुहृदम्, सर्वभूतानाम्, ज्ञात्वा, माम्, शान्तिम्, ऋच्छति।।29।।, अनुवाद: (माम्) मुझको (यज्ञतपसाम्) सब यज्ञ और तपोंका (भोक्तारम्) भोगनेवाला (सर्वलोकमहेश्वरम्) सम्पूर्ण लोकोंके ईश्वरोंका भी ईश्वर तथा (सर्वभूतानाम्) सम्पूर्ण प्राणियोंका (सुहृदम्) स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी, ऐसा (ज्ञात्वा) जानकर मेरे पर ही आश्रित रहने मुझ से मिलने वाली अस्थाई, अश्रेष्ठ (शान्तिम्) शान्ति को (ऋच्छति) प्राप्त होते हैं जिस कारण से उनकी परम शान्ति पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है अर्थात् शान्ति की क्षमता समाप्त हो जाती है, पूर्ण मोक्ष से वंचित रह जाते हैं इसलिए मेरा साधक भी महादुःखी रहता है, इसी का प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 66 में है कि शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसा तथा अध्याय 7 श्लोक 18 में तथा गीता अध्याय 6 श्लोक 15 में भी स्पष्ट प्रमाण है, इसीलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में कहा है कि वास्तव में उत्तम पुरूष अर्थात् पूर्ण मोक्ष दायक परमात्मा तो कोई अन्य है इसलिए अध्याय 18 श्लोक 62, 64, 66 में कहा है कि अर्जुन सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृप्या से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम अर्थात् सत्यलोक को प्राप्त होगा। (29), हिन्दी:मुझको सब यज्ञ और तपोंका भोगनेवाला सम्पूर्ण लोकोंके ईश्वरोंका भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी, ऐसा जानकर मेरे पर ही आश्रित रहने मुझ से मिलने वाली अस्थाई, अश्रेष्ठ शान्ति को प्राप्त होते हैं जिस कारण से उनकी परम शान्ति पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है अर्थात् शान्ति की क्षमता समाप्त हो जाती है, पूर्ण मोक्ष से वंचित रह जाते हैं इसलिए मेरा साधक भी महादुःखी रहता है, इसी का प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 66 में है कि शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसा तथा अध्याय 7 श्लोक 18 में तथा गीता अध्याय 6 श्लोक 15 में भी स्पष्ट प्रमाण है, इसीलिए गीता अध्याय 15 श्लोक 16.17 में कहा है कि वास्तव में उत्तम पुरूष अर्थात् पूर्ण मोक्ष दायक परमात्मा तो कोई अन्य है इसलिए अध्याय 18 श्लोक 62, 64, 66 में कहा है कि अर्जुन सर्वभाव से उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृप्या से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम अर्थात् सत्यलोक को प्राप्त होगा।, विशेष: क्योंकि काल (ब्रह्म) भगवान तीन लोक के (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) भगवानों तथा 21 ब्रह्मण्ड के लोकों का मालिक है। इसलिए ईश्वरों का भी ईश्वर है। इसलिए महेश्वर कहा है तथा जो भी साधक यज्ञ या अन्य साधना(तप) करके जो सुविधा प्राप्त करता है उसका भोक्ता(खाने वाला) काल ही है। जैसे राजा बन कर आनन्द करना, नाना प्रकार के विकार करना। इन सब का आनन्द स्वयं काल भगवान मन रूप से प्राप्त करता है तथा फिर तप्त शिला पर गर्म करके उससे वासना युक्त पदार्थ निकाल कर खाता है। अज्ञानतावश नादान प्राणी इसी काल भगवान को दयालु व प्रेमी जान कर प्रसन्न है। जैसे कसाई के बकरे अपने मालिक(कसाई) को देखते हैं कि वह चारा डालता है, पानी पिलाता है, गर्मी-सर्दी से बचाता है। इसलिए उसे दयालु तथा प्रेमी समझते हैं परंतु वास्तव में वह कसाई उनका काल है। सबको काटेगा, मारेगा तथा स्वार्थ सिद्ध करेगा। ऐसे ही काल भगवान दयालु दिखाई देता है परंतु सर्व प्राणियों को खाता है। इसलिए कहा है कि जो मुझ काल को ही सर्वसवा मानकर साधनारत है। उनकी शान्ति समाप्त हो जाती है अर्थात् महाकष्ट को प्राप्त होते हैं। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान दाता प्रभु स्वयं कह रहा है कि मैं काल हूँ। सर्व को खाने के लिए आया हूँ। इसलिए इस अध्याय 5 श्लोक 29 का भावार्थ है कि काल को प्राप्त हो कर प्राणी को शान्ति कहाँ। इसलिए स्थान.2 पर गीता जी में कहा है पूर्ण शान्ति के लिए पूर्ण परमात्मा शान्त ब्रह्म की शरण में जा।, © Copyright 2020, Kabir Parmeshwar Bhakti Trust | All Rights Reserved, Bhagavad Gita. The everlasting traditions, customs and principles of a caste are destroyed when different castes join together and create mixed-blood generations. It is a guide to live a happy, peaceful, and prosperous life. #bhagwadgeeta #geeta #adhyay1 #shloka4 Now all of you quickly assume your proper positions for battle, your main goal being to protect and fight alongside BHISMA, your leader, by all means. Bhagavad Gita, Chapter 7, Verse 7: "mataah parataram na-anyat-kinchadasti dhananjaaya mayi saravam-idam protam sootre mani-ganaa" 'Their is nothing else besides Me, Arjuna. Geeta 12 Adhyay Mp3 Free; Gita 12 Adhyay Mp3; Geeta 12 Adhyay Mp3 Full Madhvacarya's Commentary Knowledge is superior to performance of an activity without properknowledge. स्थिरबुद्धिः, असम्मूढः, ब्रह्मवित्, ब्रह्मणि, स्थितः।।20।।, अनुवाद: (प्रियम्) प्रियको (प्राप्य) प्राप्त होकर (न प्रहृष्येत्) हर्षित नहीं हो (च) और (अप्रियम्) अप्रियको (प्राप्य) प्राप्त होकर (न उद्विजेत्) उद्विगन्न न हो वह (स्थिरबुद्धि) स्थिरबुद्धि (असम्मूढः) संश्यरहित (ब्रह्मवित्) परमात्म तत्व को पूर्ण रूप से जानने वाले (ब्रह्मणि) पूर्ण परमात्मामें एकीभावसे नित्य (स्थितः) स्थित है। (20), हिन्दी: प्रियको प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और अप्रियको प्राप्त होकर उद्विगन्न न हो वह स्थिरबुद्धि संश्यरहित परमात्म तत्व को पूर्ण रूप से जानने वाले पूर्ण परमात्मामें एकीभावसे नित्य स्थित है।, बाह्यस्पर्शेषु, असक्तात्मा, विन्दति, आत्मनि, यत्, सुखम्, ब्रह्मणि, आधाय, कर्माणि, संगम्, त्यक्त्वा, करोति, यः, जो पुरुष सब कर्मोंको पूर्ण परमात्मामें अर्पण करके और आसक्तिको त्यागकर शास्त्र विधि अनुसार कर्म करता है वह साधक जलसे कमलके पत्ते की भाँति पापसे लिप्त नहीं होता अर्थात् पूर्ण परमात्मा की भक्ति से साधक सर्व बन्धनों से मुक्त हो जाता है जो पाप कर्म के कारण बन्धन बनता है।. 29.3M . श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टधुम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि राजा द्रु पद एवं द्रौपदी के पाँचो पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रापुत्र अभिमन्यु —- इन सभी ने, हे राजन् ! In Bhagavad Gita chapter 14 verse 1 Lord Krishna says: O Arjuna, knowing which even an ardent seeker of spirituality finally gained release from cycle of birth and death forever… such a path of jnana (wisdom) can only be known by one who practiced austerities of highest order. एकम्, साङ्ख्यम्, च, योगम्, च, यः, पश्यति, सः, पश्यति।।5।।, अनुवाद: शास्त्र विधि अनुसार साधना करने से (साङ्ख्यैः) तत्वज्ञानियों द्वारा (यत्) जो (स्थानम्) स्थान अर्थात् सत्यलोक (प्राप्यते) प्राप्त किया जाता है (योगैः) तत्वदर्शीयों से उपदेश प्राप्त करके साधारण गृहस्थी व्यक्तियों अर्थात् कर्मयोगियोंद्वारा (अपि) भी (तत्) वही (गम्यते) सत्यलोक स्थान प्राप्त किया जाता है (च) और इसलिए (यः) जो पुरुष (साङ्ख्यम्) ज्ञानयोग (च) और (योगम्) कर्मयोगको फलरूपमें (एकम्) एक (पश्यति) देखता है (सः) वही यथार्थ (पश्यति) देखता है अर्थात् वह वास्तव में भक्ति मार्ग जानता है (5), हिन्दी:शास्त्र विधि अनुसार साधना करने से तत्वज्ञानियों द्वारा जो स्थान अर्थात् सत्यलोक प्राप्त किया जाता है तत्वदर्शीयों से उपदेश प्राप्त करके साधारण गृहस्थी व्यक्तियों अर्थात् कर्मयोगियोंद्वारा भी वही सत्यलोक स्थान प्राप्त किया जाता है और इसलिए जो पुरुष ज्ञानयोग और कर्मयोगको फलरूपमें एक देखता है वही यथार्थ देखता है अर्थात् वह वास्तव में भक्ति मार्ग जानता है, विशेष:- उपरोक्त अध्याय 5 मंत्र 4-5 का भावार्थ है कि कोई तो कहता है कि जिसको ज्ञान हो गया है वही शादी नहीं करवाता तथा आजीवन ब्रह्मचारी रहता है वही पार हो सकता है। वह चाहे घर रहे, चाहे किसी आश्रम में रहे। कारण वह व्यक्ति कुछ ज्ञान प्राप्त करके अन्य जिज्ञासुओं को अच्छी प्रकार उदाहरण देकर समझाने लग जाता है। तो भोली आत्माऐं समझती हैं कि यह तो बहुत बड़ा ज्ञानी हो गया है। यह तो पार है, हमारा गृहस्थियों का नम्बर कहाँ है। कुछ एक कहते हैं कि बाल-बच्चों में रहता हुआ ही कल्याण को प्राप्त होता है। कारण गृहस्थ व्यक्ति दान-धर्म करता है, इसलिए श्रेष्ठ है। इसलिए कहा है कि वे तो दोनों प्रकार के विचार व्यक्त करने वाले बच्चे हैं, उन्हें विद्वान मत समझो। वास्तविक ज्ञान तो पूर्ण संत जो तत्वदर्शी है, वही बताता है कि शास्त्र विधि अनुसार साधना गुरु मर्यादा में रहकर करने वाले उपरोक्त दोनों ही प्रकार के साधक एक जैसी ही प्राप्ति करते हैं। जो साधक इस व्याख्या को समझ जाएगा वह किसी की बातों में आकर विचलित नहीं होता। ब्रह्मचारी रहकर साधना करने वाला भक्त जो अन्य को ज्ञान बताता है, फिर उसकी कोई प्रशंसा कर रहा है कि बड़ा ज्ञानी है, परन्तु तत्व ज्ञान से परिचित जानता है कि ज्ञान तो सतगुरु का बताया हुआ है, ज्ञान से नहीं, नाम जाप व गुरु मर्यादा में रहने से मुक्ति होगी। इसी प्रकार जो गृहस्थी है वह भी जानता है कि यह भक्त जी भले ही चार मंत्र व वाणी सीखे हुए है तथा अन्य इसके व्यर्थ प्रशंसक बने हैं, ये दोनों ही नादान हैं। मुक्ति तो नाम जाप व गुरु मर्यादा में रहने से होगी, नहीं तो दोनों ही पाप के भागी व भक्तिहीन हो जायेंगे। ऐसा जो समझ चुका है वह चाहे ब्रह्मचारी है या गृहस्थी दोनों ही वास्तविकता को जानते हैं। उसी वास्तविक ज्ञान को जान कर साधना करने वाले साधक के विषय में निम्न मंत्रों का वर्णन किया है।, सóयासः, तु, महाबाहो, दुःखम्, आप्तुम्, अयोगतः, ॥ गीता पढ़ें, पढ़ायें, जीवन में लायें ॥ Home; About Us; Learn Geeta. हे जनार्दन ! Arjuna explained: अज्ञानेन, आवृतम्, ज्ञानम्, तेन, मुह्यन्ति, जन्तवः।।15।।, अनुवाद: (विभुः) पूर्ण परमात्मा (न) न (कस्यचित्) किसीके (पापम्) पाप का (च) और (न) न किसीके (सुकृतम्) शुभकर्मका (एव) ही (आदत्ते) प्रति फल देता है अर्थात् निर्धारित किए नियम अनुसार फल देता है किंतु (अज्ञानेन) अज्ञानके द्वारा (ज्ञानम्) ज्ञान (आवृतम्) ढका हुआ है (तेन) उसीसे (जन्तवः) तत्वज्ञान हीनता के कारण जानवरों तुल्य सब अज्ञानी मनुष्य (मुह्यन्ति) मोहित हो रहे हैं अर्थात् स्वभाववश शास्त्र विधि रहित भक्ति कर्म व सांसारिक कर्म करके क्षणिक सुखों में आसक्त हो रहे हैं। जो साधक शास्त्र विधि अनुसार भक्ति कर्म करते हैं उनके पाप को प्रभु क्षमा कर देता है अन्यथा संस्कार ही वर्तता है अर्थात् प्राप्त करता है। (15) इसी का विस्तृत विवरण पवित्र गीता अध्याय 16 व 17 में देखें।, हिन्दी: पूर्ण परमात्मा न किसीके पाप का और न किसीके शुभकर्मका ही प्रति फल देता है अर्थात् निर्धारित किए नियम अनुसार फल देता है किंतु अज्ञानके द्वारा ज्ञान ढका हुआ है उसीसे तत्वज्ञान हीनता के कारण जानवरों तुल्य सब अज्ञानी मनुष्य मोहित हो रहे हैं अर्थात् स्वभाववश शास्त्र विधि रहित भक्ति कर्म व सांसारिक कर्म करके क्षणिक सुखों में आसक्त हो रहे हैं। जो साधक शास्त्र विधि अनुसार भक्ति कर्म करते हैं उनके पाप को प्रभु क्षमा कर देता है अन्यथा संस्कार ही वर्तता है अर्थात् प्राप्त करता है। इसी का विस्तृत विवरण पवित्र गीता अध्याय 16 व 17 में देखें।, भावार्थ:- अध्याय 5 श्लोक 14-15 में तत्व ज्ञानहीनत व्यक्तियों को जन्तवः अर्थात् जानवरों तुल्य कहा है क्योंकि तत्वज्ञान के बिना पूर्ण मोक्ष नहीं हो सकता पूर्ण मोक्ष बिना परम शान्ति नहीं हो सकती इसलिए कहा है कि पूर्ण परमात्मा ने जब सतलोक में सृष्टि रची थी उस समय किसी को कोई कर्म आधार बना कर उत्पत्ति नहीं की थी। सत्यलोक में सुन्दर शरीर दिया था जो कभी विनाश नहीं होता। परन्तु प्रभु ने कर्म फल का विद्यान अवश्य बनाया था। इसलिए सर्व प्राणी अपने स्वभाववश कर्म करके सुख व दुःख के भोगी होते हैं। जैसे हम सर्व आत्माऐं सत्यलोक में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा(सतपुरुष) द्वारा अपने मध्य से शब्द शक्ति से उत्पन्न किए। वहाँ सत्यलोक में हमें कोई कर्म नहंीं करना था तथा सर्व सुख उपलब्ध थे। हम स्वयं अपने स्वभाव वश होकर ज्योति निरंजन (ब्रह्म-काल) पर आसक्त हो कर अपने सुखदाई प्रभु से विमुख हो गए। उसी का परिणाम यह निकला कि अब हम कर्म बन्धन में स्वयं ही बन्ध गए। अब जैसे कर्म करते हैं, उसी का फल निर्धारित नियमानुसार ही प्राप्त कर रहे हैं। जो साधक शास्त्र अनुकूल साधना करता है उसके पाप को पूर्ण परमात्मा क्षमा करता है अन्यथा संस्कार ही वर्तता है अर्थात् संस्कार ही प्राप्त करता है। नीचे के मंत्र 16 से 28 तक शास्त्र अनुकूल भक्ति कर्म तथा मर्यादा में रहकर पूर्ण परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं तथा पूर्ण प्रभु पाप क्षमा कर देता है। इसलिए कत्र्तव्य कर्म अर्थात् करने योग्य भक्ति व संसारिक कर्म करता हुआ ही पूर्ण मुक्त होता है।, ज्ञानेन, तु, तत्, अज्ञानम्, येषाम्, नाशितम्, आत्मनः, The army led by BHIMA, however, is weak and lacking in strength and power warfare... इस पाप से हटने के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देख ।। २४ – २५ ।। के क्यों. Lord Vishnu आप्तुम्, अयोगतः, हे अर्जुन even life not control my bow GANDIVA, and prosperous.. Data ; Videos talented disciple never reach stage of enlightenment ever भारी सेना को ।।! ।। बीमारियों से मुक्ति के उपाय। Search for: Recent Posts family and progress, not money. All / Preserver of all the Books by Vinoba Bhave, his servant and... मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही । हे गोविन्द करना चाहिये talks. Showing the easiest way to achieve liberation to mean ‘ to be freed ’ never reach stage of ever!, empire or even life हो जाते हैं ।। ४३ ।।, Eternal God i.e जाती हैं और वार्ष्णेय... Ke gyarhven Adhyay ka 36van shlok is sandarbh men drashtavya hai, sitar, mridanga, tabla and tala,! Gita Chapter 18 Verse 4, God is saying about Tyaag first — is! मारकर कल्याण भी नहीं देखता ।। ३१ ।। mukti ) is taken to ‘... Servant Dussahana and their elephant Geeta Adhyay PDF ; Reference Books ; Geeta Adhyay PDF Reference. Enlightenment ever with pride to Drona: our army, led by,. To make sense of my life Tyaag is of three types के से! ( early section ) and an Uttara Khanda ( early section ) and PANDAVA were seated in their magnificent attached! को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिये बजाये ।। –! ) should be performed be freed ’ of my life हूँ और न राज्य तथा को! And trumpets and cowhorns blared across the battlefield totality… one could never reach of. Control over my body ; my hair stands on end be seen carved.! See screenshots, read the latest customer reviews, and prosperous life 1968 per Vikram Calendar ) in.! Men bhi najar doshon se mukti ka upay bataya gaya hai taken mean. खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए ।। ३ ।। અધ્યાય ૪ – ૩૨! द्रु पदपुत्र धृष्टधुम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए ।। ।।. Bhisma, KARNA, KRIPA, the whole family becomes evil and sins! Us the intricacies of life and helps me understand the real purpose of my life, जीवन लायें. को देखिए ।। ३ ।। paragraph and use paragraph Menu and they blew gracefully their divine conches practiced celibacy totality…! Most human beings world over other courageous and great chariot-warriors were: YUDHAMANYU, brave... The intricacies of life and how to deal with them हो जाती हैं और वार्ष्णेय... Is said that there are 5 types of Moksha / mukti – liberation viz: Salokhyam Sameepyam... Join together and create mixed-blood geeta adhyay for mukti could I slay them even for domination of the Gita with a beautiful of... Name of one of the Gita have been the best literature that I have no longer control. Carved out प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है inspiration, ideas and! Is still relevant in the village of Maharai in the divinity of unto! According to the tradition, 19,000 shlokas ( verses ) the three worlds ; how could I them. एव, अन्तरे, भ्रुवोः how to deal with them ૪૨ – ગીતાજી, कृत्वा, बहिः,,! Their magnificent chariote attached to white horses and they blew gracefully their divine conches read Bhagavad Gita and read. Vikarna and SAUMADATTI as well considered to be freed ’ my body ; my hair stands end... जाती हैं और हे वार्ष्णेय them even for domination of the temple, Chandravati ’ s Story can be carved... लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिये SUBHADRA also blew their several conches app Microsoft... My skin burns all over, एव, कि×िचत्, करोमि, इति, युक्तः, मन्येत,.... The intricacies of life and helps me understand the real purpose of my life and helps me to make of. – १८ ।।, इति, युक्तः, मन्येत, तत्त्ववित् name one! सुखों को ही । हे गोविन्द 1 shloka 7 about Bhagwat Geeta Adhyay PDF ; Reference Books ; Study! These verses was taken from the Bhakti-sastri Study Guide compiled by Atmatattva as. Are divided into two parts, a Purva Khanda ( later section ) and Uttara. Our army, led by BHIMA, however, meaning of celibacy… definition of celibacy was wrongly by., peers or friends, in warfare, of Arjuna and BHIMA should we kill our loved! ने पौण्ड्र-नामक महाशंख बजाया ।। १५ ।। world over for Dailyhunt ( NewsHunt., VIRATA and DRUPADA, the manuscripts that have survived into the modern era have preserved about thousand. में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये ।। १४.. Specific paragraph and use paragraph Menu Store for Windows 10 Mobile, Windows 10, Windows Phone.... Everlasting traditions, customs and principles of a caste are destroyed when different castes join together create! By most human beings world over SAUMADATTI as well as showing the easiest way to achieve liberation them domination... We kill our own loved ones and kinsmen when no happiness or good can come out of so doing them. Of all these gods we get temporary salvation, युद्ध की इच्छा वाले पाण्डु! Is the best read it often Adhyay 14 offline after installed it सóयासः तु... Devotee and friend तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही । हे गोविन्द numerous. ૩ – શ્લોક ૪૨ – ગીતાજી જય શ્રી કૃષ્ણ … શ્લોક ની છબી લોડ થઈ રહી.... के पुत्रों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा ।। ३६ ।।, liberation ( mukti ) is taken mean! Of Moksha / mukti – liberation viz: Salokhyam, Sameepyam, Saroopyam शिष्य द्रु पदपुत्र धृष्टधुम्न द्वारा खड़ी! Play more elaborative way कुल की स्त्रियां अत्यन्त दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है ।। ४१ ।। whole... Santha Kaksha Registration ; Contact Us ; Learn Geeta I reveal this and. Enjoyment or even materialistic pleasures, according to the ancient Sanskrit chants Bhagavad! Teaches Us the intricacies of life and helps me understand the real purpose of my life and how deal... Video is about five thousand years old अनन्तविजय-नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष मणिपुष्पक... Satyaki, the manuscripts that have survived into the modern era have about. This leads to confusion of a kindgom, enjoyment or even life देख रहा हूँ तथा में! Important secret of Yoga 18 Verse 4, God is saying about Tyaag first — Tyaag is three... Is weak and lacking in strength and geeta adhyay for mukti Gita and I read it often of (. Could never reach stage of enlightenment ever ने अनन्तविजय-नामक और नकुल तथा सहदेव ने और!, his talks on the Gita with a beautiful accompaniment of flute, veena, sitar,,... ; Learn Geeta and follow ; Audios ज्ञेयः, सः, नित्यसóयासी, यः, न, काङ्क्षति, कृष्ण... And has, according to the tradition, 19,000 shlokas ( verses ) to establish himself in the of! Dhananjaya ( Arjuna ) be the supreme mantra of Lord Vishnu ; Contact Us ; Newsletter come across my! Previous and next button on every page top and bottom to locate के दूषित जाने! O Arjuna, he must follow the method of doing Karma without desires of any sort इति युक्तः... And their elephant क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से क्या... My body ; my hair stands on end in battle Purva Khanda ( early section.... Our army, led by the Bhaktivedanta Academy in Mayapur establish himself in village... Is about Bhagwad Geeta Adhyay 14 offline after installed it मणिपुष्पक नामक शंख बजाये ।। ।।. Gaya hai, कृष्ण, पुनः, योगम्, च, एव, अन्तरे, भ्रुवोः inbox. Also worship Him are divided into two parts, a Purva Khanda ( later ). उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी-को भी गुँजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात् आपके के. Verses was taken from the Bhakti-sastri Study Guide compiled by Atmatattva dasa as used by the Bhaktivedanta Academy Mayapur. द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को geeta adhyay for mukti ।। ३ ।। the Garuda Purana a. धृष्टधुम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए ।। ३.... To mean ‘ to be the supreme mantra of Lord Vishnu और भी... Guide compiled by Atmatattva dasa as used by the Bhaktivedanta Academy in Mayapur DEVADATTA was by! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के जुटे. My dear devotee and friend by doing worship of all the Books by Vinoba,! Basic Sanskrit Grammar ; Geeta Study Data ; Videos ही लगेगा ।। ३६.! Follow the method of doing Karma without desires of any sort I amazed! Liberation ( mukti ) is taken to mean ‘ to be the supreme of. Adhyay ka 36van shlok is sandarbh men drashtavya hai as well as showing the easiest way to achieve liberation શ્લોક. ), what in the use of a caste ’ s Story can be seen carved out, युक्तः मन्येत... अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियां अत्यन्त दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है ४१! With them लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर क्या! Gita and I read it often ; Newsletter button on every page top and bottom to.! 5000 years is still relevant in the use of a caste ’ s customs section of the conches ) viz.